पटना। बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने बिहार विधानसभा को गुमराह कर दिया। एस्बेस्ट फैक्टरी के मामले में उन्होंने जो जवाब दिया है, वह लोकसभा में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्रियों सुषमा स्वराज और डॉ सीपी ठाकुर के जवाब से बिल्कुल जुदा है। ऐसे में सवाल है कि मोदी को बिहार के अधिकारियों ने गुमराह कर दिया या मोदी के विधानसभा को?
दरअसल, विधायक संजय सिंह टाइगर ने विधानसभा में स्बेस्टस से जुड़ा सवाल किया था। उसके जवाब में मोदी ने कहा कि स्बेस्टस के धूल कणों से स्वास्थ्य पर पडऩे वाले प्रतिकूल असर के बारे में कोई अध्ययन रिपोर्ट नहीं है। उन्होंने यह भी कहा था कि बिहार में जो फैक्टरी लगी है, उसकी जांच पड़ताल के दौरान धूल कण की मात्रा तय दायरे में पायी गयी। लेकिन स्बेस्टस के खिलाफ अभियान चलाने वाले गोपाल कृष्ण ने उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर दावा किया है कि मोदी ने बेहद चालाकी से उन तथ्यों पर पर्दा डाल दिया जो स्बेस्टस से होने वाले खतरे के बारे में आगाह करते हैं। लोकसभा में स्वास्थ्य मंत्री की हैसियत से सुषमा स्वराज ने 13 अगस्त 2003 को इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया था कि स्बेस्टस से स्बेस्टोसिस, फेफड़े का कैंसर और मेसोथेलिमा नामक जानलेवा बीमारी की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार 2006 में स्बेस्टस के खतरों को देखते हुए इंटरनेशन लेबर आर्गेनाइजेशन ने इसके उत्पादन और उपयोग के खिलाफ प्रस्ताव पास किया था।
इसके पहले वर्ष 2001 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डॉ सीपी ठाकुर ने संसद को बताया था कि स्बेस्टस के खतरों को देखते हुए जर्मनी, फ्रांस, यूके, इटली सहित 50 देशों में स्बेस्टस के उत्पादन पर रोक लगा दी गयी है। भारत में केरल ऐसा राज्य है जहां सार्वजनिक स्थानों, स्कूलों आदि में इसके इस्तेमाल पर रोक है।
मालूम हो कि बिहार के मुजफ्फरपुर में स्बेस्टस फैक्टरी के खिलाफ लोगों के भारी आक्रोश के बाद उसे बंद कर दिया गया। लेकिन वैशाली और भोजपुर जिले में इसका उत्पादन हो रहा है। जानकारों का कहना है कि स्बेस्टस का इस्तेमाल करने वाला भी घातक बीमारियों की चपेट में आ सकता है। विधानसभा के बजट सत्र के दौरान इस सवाल का जवाब देते हुए सुशील मोदी ने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने स्बेस्टस से जुड़ी एक याचिका खारिज कर दी। लेकिन सच्चाई यह नहीं है। गोपाल कृष्ण बताते हैं कि उस याचिका को अदालत ने कुछ तकनीकी कारणों से भले ही खारिज कर दिया हो पर उसने 1995 के अपने फैसले को कायम रखा है। यह बात मोदी कैसे भूल गये? अदालत ने विश्व स्वास्थ्य संगठन, आइएलओ और विभिन्न स्वास्थ्य एजेंसियों की जांच रिपोर्ट के आधार पर केंद्र और राज्य सरकारों को फैसला लेने को कहा था।
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