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Tuesday, November 13, 2012

Goddess Laxmi Hijacked

Short Story

Goddess Laxmi Hijacked


Pushpraj

I was trying to converse with my beloved Ms Laxmi through telepathy. Suddenly, I heard the voice of Goddess Laxmi. Considering me to be her most loyal devotee she blessed me with unasked for boon saying, "whosoever you will be affectionate with, their house will get filled with wealth and prosperity." First, I went to Nandigram. Then to Adhikaripara, Pramanik Para and then to one-by-one to each village and hamlet. Then I turned towards the village of the displaced people of Narmada. Their poverty vanished. I then, went to my grandfather's village Manjhaul. I thought lets meet the Magahiya Musahars of Bansbadi. Goddess stopped me on the way and rebuked me with bad words saying, "I had said whosoever you will be affectionate with, their house will get filled with wealth and prosperity. But isn't there a limit to affection which is confined to one's own family, relatives and inherited kith and kin". 

I said, " If I am affectionate towards all the poor my country, why are feeling jealous?. Goddess Laxmi said, "whoever I have blessed has always deceived me. If you will continue to roam and alleviate the impoverishment of the poor, what will happen to the rich of the country ? Poor are born to serve the rich, the way fishes are meant to beautify the ponds, master archer.  If you want to  touch the stars of your accomplishments then instead of looking at the ugliness of earth, look at the moon and stars in the sky."
I started looking at the sky. Goddess withdrew the shadow of her boon from me and vanished.

In the morning, I read the big news in the newspapers that  'Goddess Laxmi has been hijacked by the richest family of the country".    

 (लघुकथा) 
अपहरण का जश्न 
-पुष्पराज 
मैं अपनी प्रेमिका सुश्री लक्ष्मी से टेलीपैथी माध्यम से संवाद की कोशिश कर रहा था तो अचानक देवी लक्ष्मी की आवाज आने लगी। उनने मुझे भक्तों में सबसे ज्यादा बफादार मानकर बिना मांगे वरदान दे दिया। '' तुम जिस किसी से स्नेह करोगे, उसका घर धन-सम्पदा से भर जायेगा''। मैं सबसे नंदीग्राम गया। नंदीग्राम के अधिकारी पारा, प्रामानिक पारा सहित एक- एक पारा घूम गया। फिर मैं नर्मदा के विस्थापितों के गाँव गया। इन  सबकी गरीबी ख़त्म हो गयी। अब मैं अपने दादा के गाँव मंझौल की तरफ मुड़ा। मैंने सोचा बांसबाडी में रह रहे मगहिया मुसहरों से मिला जाय। देवी लक्ष्मी ने मेरा रास्ता रोका और मुझे डांटते हुए बहुत बुरा-भला कहा। " मैंने कहा था जिससे स्नेह करोगे, उसका घर धन-सम्पदा से भर जायेगा। स्नेह करने की भी कोई सीमा होती है न। अपना परिवार, अपने वंशज, सगे-संबंधी, कुटुंब-रिश्तेदार"। मैंने कहा- मैं अपने मुल्क के तमाम ग़रीबों से स्नेह करता हूँ तो आपको हमारे स्नेह से इर्ष्या क्यों हो रही है? देवी लक्ष्मी ने कहा- ''मैंने जिस-जिस को वरदान दिया, उस सबने हमारे वरदान से छल किया। अगर इसी तरह तुम घूम-घूम कर तमाम गरीबों की दरिद्रता हरने में लग गए तो इस देश के अमीरों का क्या होगा? गरीबों का जन्म अमीरों की सेवा के लिए होता है, जैसे मछलियों का जन्म तालाब का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए। देखो ये गरीब अमीरों के तालाब की मछलियाँ हैं पार्थ। अपने सितारे बुलंद करना चाहते हो तो धरती की विद्रूपताओं को देखने की बजाय आकाश के चाँद-तारों से सीख लो।'' मैं आकाश निहारने लगा और लक्ष्मी अपने वरदान का साया मेरे हिस्से से छीन कर कहीं गायब हो गयी। 
सुबह के अख़बार की सबसे बड़ी खबर- देवी लक्ष्मी का मुल्क के एक सबसे बड़े धनी परिवार ने अपहरण कर लिया है।   

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